Thursday 23 August 2018

न्याय पाने वाले व्यक्ति को पहले कई वर्ष इलाका मजिस्ट्रेट की अदालत में घसीटा जाता है


आज़ादी से पहले देश में स्याने बजुर्ग लोग गाँव की चौपाल पर ही बैठकर सभी प्रकार के आपसी झगड़ों का निपटारा कर देते थे। वे  जिंदगी के तजुर्बे व आपसी विचार विमर्श से ही यह सब फैसले कर पाते थे, क्योंकि जिंदगी में तजुर्बे और आपबीती के सहारे ही कोई अपनी  समझ से निर्णय ले सकता है। 






लेकिन आज की न्याय प्रणाली खासकर भारत में जनता को न्याय देने में ना कामयाब सिद्ध हो चुकी  है अदालतों में लाखों केस पेंडिंग पड़े हैं। इसका एक ही कारण है कि निर्णय लेने वाले व्यक्ति के पास कोई तजुर्बा नहीं है और बिना तजुर्बे के सिर्फ किताबे पढ़ कर डिग्री से किसी भी  समस्या का हल शीघ्र और सही  नहीं निकल सकता।  

भारत के न्यालयो की बात करे तो यहां पर  एक व्यक्ति कानून की पढ़ाई करने के बाद रट्टा लगा कर अपने दिमाग को कंप्यूटर की हार्ड डिस्क बनाकर उसमें सारी पी सी एस की  पढ़ाई डालकर पास हो जाता है

 और यह लोग किताबी ज्ञान से बिना तुजर्बे के 24 - 25 वर्ष की आयु में इलाका मजिस्ट्रेट बन कर जनता के न्यायधीश बन जाते है। इस तरह अदालतों में जनता को न्याय देने के लिए वे सभी प्रकार के केसों को सुनते है और निर्णय देते है।

पहले समय में एक तरफ यहां बुजुर्ग या स्याने लोग अपनी जिंदगी के तजुर्बे से लोगों को न्याय देते थे। वही आज हमारी अदालतों में जज किताबें पढ़कर लोगों को न्याय दे रहे है। जिससे अदालतों में कोई फैसला समय पर नहीं होता और फैसला होने में कई कई वर्ष लग जाते है। 
छोटी अदालतों से ही अधिकतर केसो की शूरुआत होती है। यहां पर नए बने जज जो अभी हाल ही में  किताबें पढ़कर जज बन कर आए है, उन्हें चोर लुटेरे, बदमाश, ठग, बलात्कारी व कातिलों की जिंदगी व दुनियादारी का ज्ञान नहीं होता। उन्हें केवल किताबों में लिखी बातों तक ही ज्ञान होता है। 

हिंदुस्तान में सबसे पहले केस इलाका मजिस्ट्रेट के पास आता है यहाँ पर क्रिमिनल केस में पुलिस आई ओ साहेब जो लिख देता है। उसी रिपोर्ट पर  कोर्ट में केस चालू हो जाता है और यहाँ पर गवाहों के ब्यान तफ्तीश आदि में ही कोर्ट में कई साल लग जाते है। 


अगर सरकार चाहती है कि अदालतों में निर्णय शीघ्र हो तो इलाका मजिस्ट्रेट के स्थान पर हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के जजों को बैठाया जाए जो अपने जिंदगी के तजुर्बे से गुनाहगार को तुरंत पहचान कर निर्णय देने में कामयाब साबित होंगे। लेकिन हमारे देश में उलट चल रहा है। न्याय पाने वाले व्यक्ति को पहले कई वर्ष इलाका मजिस्ट्रेट की अदालत में घसीटा जाता है।
यहाँ पर बैठे नए बने जज जो बिना तजुर्बे केवल किताबी ज्ञान से कोई सही निर्णय नहीं ले

पाते कई कई वर्ष निचली अदालतों में धक्के खाकर लोग फिर यहाँ से  ऊपर की अदालतों की तरफ जान बचाने के लिए भागते है। 
निचली अदालतों में यदि सरकार चाहती है
कि पी सी एस किताबें पढ़कर आने वाले नए जज शीघ्र फैसले करें तो उनके साथ जिंदगी के तजुर्बेदार लोग भी  होने चाहिए ताकि लोगों को सही न्याय दिलाने में वे मदद कर सके।

इसके लिए जेलों में बंद हमारे यहाँ  चोर, डकैत, लुटेरे, बदमाश, ठग, बलात्कारी, कातिल लोग जो आजीवन सजा काट रहे हैं। जिन्हे चोरी, ठगी का सब तजुर्बा व ज्ञान है।
सरकार को अदालतों के काम में इनके तुजर्बे की सेवा लेनी चाहिए ताकि जनता को न्याय शीघ्र मिल सके।

इसके लिए सभी निचली अलग अलग अदालतों में स्पैशल बोर्ड या पैनल बना कर जजों के साथ -साथ तजुर्बेकार कैदियों की सेवा ली जाए और इस तरह चोर को चोर और कातिल को कातिल तुरन्त पहचान लेगा और किताबी ज्ञान रखने वाला पढ़ा लिखा जज कानून की किताब खोलकर उसे सजा दे देगा। 

अदालतों में पुलिस का अमूमन हर केस में एक  अहम रोल होता है सारे केसो की बागडोर इन्वेस्टीगेशन अफसर के हाथ होती है यह अफसर कई बार जो मैट्रिक या बाहरवीं क्लास तक पढ़ा होता है कई बार स्पोर्ट कोटे की भर्ती में वह  एस एस आई  या डिप्टी इंस्पेक्टर डायरेक्ट बन जाता है स्पोर्ट कोटे वाले अफसरों के दिमाग में खेल कूद भाग दौड़ ही होती है और  इनकी परसनेलटी दबदबे और रौब दार जरूर होती है ऐसे पुलिस अफसरों को कानून का कोई पूर्ण ज्ञान नहीं होता। 

यही वजह है की किसी भी केस की शूरूआती जांच पड़ताल सही तरीके से नहीं होती और ना समझ सिफारशी पुलिस अफसर बिना दिमाग लगाये  इधर उधर से दहेज़, बलात्कार या कत्ल के केस की रिपोर्ट बना कर अदालत में पेश कर देते है  और इसी रिपोर्ट पर जो कि दसवीं, बाहरवीं पास ए एस आई ने झूठे गवाहों के ब्यान पर तैयार की होती है उस पर ही  हाई कोर्ट के जजों से लेकर सुप्रीम कोर्ट के जज तक बहस व जांच  करते है उसी तरह जिस प्रकार कोई अंधेरे में काली बिल्ली है या नहीं आँखे फाड़ फाड़ कर टिक टकी लगा कर ढूंढ़ता है।  इस तरह कोर्ट के जज थाने के ए एस आई द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट पर अपना कीमती समय और दिमाग की माथा पच्ची करके  निर्णय देते है। 

अगर यही सुप्रीम कोर्ट के तजुर्बेकार न्यायाधीश निचली अदालत में होते तो तुरंत एस आई की रिपोर्ट पर अपने तजुर्बे के साथ गलत या सही का निर्णय दे देते और जनता को न्याय के लिए हाई कोर्ट के चक्कर न लगाने पड़ते। इस लिए एक तजुर्बेकार स्याना समझदार न्यायधीश हर रोज छोटी अदालतों के केस फटाफट निपटा सकता है और इस तरह अदालतों में पेंडिंग पड़े करोड़ों केस निचली अदालतों में ही निपट जाएंगे। 


विचार कीजिए हमारी अदालतों में कतल के केस में दो वकील मौजूद होते है एक मुजरिम को सजा दिलाना चाहता है और दूसरा माफ़ कराना चाहता है। जाहिर है कि यहां पर कातिल को बचाने के लिए एक वकील झूठ बोल रहा है और जज को भी पता है कि दोनों वकीलों में से  एक वकील कातिल का साथ दे रहा है  और कानून, न्याय व मौलिक अधिकारों के नाम पर अदालतों का समय नष्ट कर रहा है और झूठ का साथ देने वाला वकील मुजरिम कातिल को सजा देने में रोड़ा अटका रहा है इस तरह माननीय न्यायधीश साहेब कई कई वर्ष तक कातिल का साथ देने वाले वकील को गलत साबित नहीं कर पाते।  

अगर सरकार चाहती है कि लोगो को न्याय सही और शीघ्र मिले इसके लिए सिस्टम बदलना होगा और जो वकील गलत व्यक्ति का साथ देकर और नोट कमाने के चक्कर में अदालतों का समय  बर्बाद करते हैं जो  वकील झूठ व मुजरिम  का साथ देते है। उन पर भी दोषी व मुजरिम का साथ देने पर कानूनी कार्रवाई और कम जुर्माने का प्राबधान रखा जाए ताकि कातिल से मोटी फीस लेकर कोई भी वकील उसे यह कहने का साहस न कर सके कि वह उसे अदालत से जमानत करा देगा या बरी करा देगा।


अंत में यही कहा जाएगा कि निचली अदालतों में तजुर्बेकार लोग होने चाहिए  और जो वकील अदालतों का समय बर्बाद करते है और अगर यह साबित हो जाए की वकील साहेब गलत का साथ दे रहे है तो उस पर जुर्माना ठोका जाए ताकि वकील साहेब रुपये बनांने के चक्क्र में देश की जनता व अदालतों का समय बर्बाद न करे।  
Shri Paul Sharma 
RTI & Human Rights Activist
Human Rights Action Media

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