Sunday 27 May 2018

प्राकृति के बहुमूल्य मानव शरीर के अंगो से काम ले नहीं तो वेंटिलेटर पर प्राण निकलेंगे

प्राकृति ने मानव जीवन की संरचना पांच तत्वों से  ऐसी की है कि  उसका सारा शरीर प्राकृति ढंग से ही तंदरूस्त व निरोग रहे। इसलिए शरीर में लगातार सौ वर्ष से अधिक तक चलने वाली सांस शरीर का बोझ उठा कर चलने वाली टाँगे जिससे हज़ारो मील चल सकते है इसी तरह  बाजू कंधे हाथो से  हम भारी से भरी वजन उठा सकते है दिमाग से जितना चाहे सोच सकते है। मुंह की जवान से जितना चाहे बोल सकते है। 

दुर्भाग्य से आज मानव ने प्राकृति द्वारा बने इस  शरीर को अपने तरीके से जीना शुरू कर दिया है और अपने ही शरीर के अंगो से काम लेना बंद कर  दिया है जिस कारण आज हर मानव का शरीर शिथल पड़ जाता है और शरीर के अंगो को काम करने के लिए पूरा समय नहीं मिलता और शरीर की नशे माश- पेशीय धीरे धीरे कमजोर पड़ कर अपना शरीर की जरूरत के मुताबिक कार्य करना कम कर देती है। 
हमने  प्राकृतिक मानव शरीर को प्राकृति तौर पर न जी कर उससे खिलबाड़ करना शुरू कर  दिया जिससे  हम इस भौतिक इंटरनेट युग में अपने ढंग से आरामपरस्त होकर बिना हिलाये ढुलाए जीने के आदी हो रहे है। इस शरीर के अंगो को हम कसरत या शारीरिक बल से नहीं चलाते केवल अंग्रेजी दवाइयों के सेवन से इसे चला रहे है हार्ट किडनी लीवर ब्लड प्रेसर डायबिटीज जैसी बीमारिया आज हर घर में प्रवेश कर  चुकी है जिस कारण बच्चो से लेकर बुजुर्ग लोग आज  अंग्रेजी दवाइयों के सहारे ही जी रहे। 
अब बात करते है मौत की।  भौतिक युग से पहले इन्शान अपनी पूरी जिंदगी जी कर वात पित कफ़ जैसी बीमारियों से जब शरीर वृद्ध अवस्था में पहुँच कर कमजोर हो जाता था खाना पीना छोड़ देता था इस तरह वह धीरे धीरे प्राकृतिक नेचुरल मौत मरता था। 

लोग उसे जमीन पर लिटा देते थे उसके मुंह में गंगा जल तुलसी आदि चमच से डालते रहते थे और उसके शरीर की मुक्ति के लिए उसे गीता का पाठ सुनाते रहते थे कच्चे फर्श होते थे चींटिया मक्खिया उसके रोगी शरीर  के आस पास इकट्ठी होने लग जाती थी और कुछ  दिनों बाद  उसके स्वास निकल जाते थे। 
आधुनिक युग में जब से हमने अपने प्राकृतिक ढंग से जीने का तरीका छोड़ दिया है  और भौतिक वस्तूओ का जीवन में महत्व बढ़ा कर अपने  शरीर को आरामपरस्त बना दिया है। अपने शरीर के अंगो कोद्वारा ढंग से न चलाकर उन्हें मशीन और दवाइयों के सहारे चलाने लगे है जिससे हमारे शरीर  प्राकृतिक सिस्टम रूक जाता है और शरीर अंग्रेजी दवाइयों के सहारे ही चलता है। 
बुढ़ापे से पहले ही 40 -60 की अवस्था में जब अंग्रेजी दवाईया शरीर को खोखला और रोगी बना देती है जिसे शरीर के अंग दवाइयों से सड़ जाते है और वह अपना काम करना बंद कर देते है।  हॉस्पिटल में डाक्टर फिर इन अंगो को मशीनो से चलाते है इससे जिन्दगी के वर्ष दो वर्ष और निकल जाते है। अंत में इन्शान की मौत आज वेंटीलेटर पर ही होती है क्योकि उसने प्राकृति द्वारा मिला बहुमूल्य अपना  जीवन प्राकृतिक ढंग से नहीं जीवन यापन किया। 

 शरीर के अंगो को उनकी क्षमता के मुताबिक उनसे काम नहीं लिया उल्टा डाक्टरों की अंग्रेजी दवाईया खाकर उन्हें पूरी तरह रोगी बना दिया।  हमने इस प्राकृतिक शरीर को जो चौबीस घंटे कार्य करता है अब डाक्टरों के कहने पर कि आधा घंटा सैर कर लिया करो इस का मतलब यह हुआ कि जैसे हमने किसी को चिढ़ाना है तो उसे हम अंगूठा दिखाते है और गई  आधे घंटे की सैर भी जो  डाक्टरों द्वारा बताई शरीर को अंगूठा दिखाकर चिढ़ाने वाली बात है।  

प्राकृतिक  के इस अनमोल शरीर को अगर  हम स्वस्थ और निरोगी रखना चाहते है तो अपने शरीर के सभी अंगो से उनकी क्षमता के अनुसार काम ले ताकि तंदरुस्त शरीर  इस जमी पर आसमान के नीचे खुद व खुद अपने प्राण वायु में छोड़ दे। 
नहीं तो अंग्रेजी दवाइयों के डाक्टर सर्जन आपको अपना मरीज बनाकर शरीर के प्राण वेंटीलेटर मशीन पर ही निकालेंगे।  
Shri Paul Sharma 
RTI & Human Rights Activist
rtihumanrights.blogspot.com 
M -9417455666 Ludhiana

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