Saturday 10 March 2018

अदालतों में बैठे वकील लोगों को न्याय दिलवाने की बजाए केसों को उलझा रहे हैं

आजादी के बाद 1960 से अब तक देश को न तो ईमानदार नेता मिले, न पुलिस अफसर और न ही जनता को न्याय मिला। 

यही कारण है कि अदालतों में लोग भटकते फिरते हैं। अनपढ़ता के कारण आज तक पढ़े लिखे बाबुओं ने जनता का कानून के नाम पर शोषण ही किया है। आज भी देश में 90 प्रतिशत लोगों को फार्म तक नहीं भरने आते हैं। कहने का मतलब है कि  लोगों को प्रैक्टिकल कार्यो के बारे में कुछ पता ही नहीं है।   

1947 से पहले लोगों में भाईचारा था। लोग देशभक्त थे। सारे देश की जनता का एक ही नारा था आजादी और उस समय लोग अंग्रेजों से आजादी पाने के लिए जी रहे थे। अंग्रेजों से लड़ रहे थे। चाहे वे पढ़े लिखे थे या अनपढ़। यह सच है कि अंग्रेजो के जमाने में अदालतों में आम जनता को न्याय मिलता था कोई भी फौजदारी या सिविल का केस 30 साल तक अदालतों में नहीं लटकता था। उस वक्त का प्रशासन ईमानदार था। जज और वकील जनता के दुःख और दर्द की  नब्ज पहचानते थे। वकील लालच में आकर  किसी को धोखा नहीं देते थे। लेकिन आजादी के बाद धीरे धीरे वकीलों में नोट कमाने की होड़ लग गई और वे स्वार्थी हो गए उन्होंने जनता को लूटना शुरू कर दिया इस तरह न्याय दिलवाने वाले वकीलों का जमीर मर गया। अदालतों में उन्हें इंसान का दुःख दर्द नहीं केवल पैसा ही पैसा दिखाई देने लगा। यही कारण है कि आज लालची वकीलों की वजह से ही करोड़ों केस अदालतों में पेंडिंग पड़े हैं।  आज एक व्यक्ति जवानी में यदि अदालतों के केसो में  उलझता है तो वकीलों की वजह से बुढ़ापे तक उसे न्याय नहीं मिलता। 
कचेहरी में बैठे वकील लोगों को न्याय दिलवाने की बजाए केसों को उलझा रहे हैं। वकील पैसे बंनाने की लालच में  पेशी पर आए लोगों की जेब से एविडेन्स, जवाब, एग्जम्पशन, रिप्लाई, स्टेटमेंट, जमानत, कन्सिडरेशन, वकालतनामा आदि कईं नामो से केस में फंसे हुए लोगों से रुपए ऐंठते रहते हैं। इसलिए अदालत के केस में फंसे लोग वकीलो के लिए सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी बन जाते है।   


मजे की बात यह है कि अब लोग भी सयाने हो गए है कुछ लोग जब अदालत में तारीख पर जाते हैं तो वह अपनी जेब में 2-3 सौ रुपए लेकर ही जाते हैं।  जब वकील उनसे पांच सौ रुपए टाइप कागजों के या अपनी फीस आदि मांगता है तो केस पर आया  व्यक्ति अपनी जेब दिखा देता है कि मेरे पास तो सिर्फ 2 सौ रुपए है और भी यह बस का किराया है और मैंने रोटी भी खानी है। अभी पैसे नहीं है  अगली तारीख पर आपको रुपए दे दूंगा। यदि वकील लालची हो गए है अब लोग भी सयानी हो गए हैं जो जेब से जल्दी कहीं कोई पैसा नहीं निकालते।  
इसलिए अदालतों में लाखों केस पेंडिंग पड़े होने का मुख्य कारण वकील ही हैं जो हर तारीख पर अपनी दिहाड़ी पाने के चक्कर में कोई भी फैंसला कराने में दिलचस्पी नहीं लेते और वर्षो तक केस लटकता रहता है। 
सोचने की बात है कि पेशी के दौरान जब अदालत में न्यायधीश के सामने एक कातिल मुजरिम पेश होता है तब  उस समय एक वकील उसे कातिल साबित करना चाहता है और दूसरा वकील उसे निर्दोष साबित करना चाहता है। जज को पता है कि दोनों वकीलों में से एक झूठा वकील है जो कातिल को बचाना चाहता है। बस इसी कश्मकश में मुजरिम को सजा नहीं मिलती। दोनों तरफ के वकील साहेब  मुजरिम व पीड़ित से  हर तारीख पर गवाहों के ब्यान आदि के नाम पर फीस लेकर जेबों में डालते रहते हैं उन्हें कोई टोकने वाला नहीं है।  सरकार ने भी वकीलो को अधिकार दिया है कि वे अपनी मनमर्जी से जैसे चाहे काम करे उन पर कोई कार्रवाई नहीं होगी इसलिए अब वकील सुप्रीम कोर्ट के कानून के अनुसार अपने अपने ग्राहक से जितने मर्जी रुपए ऐंठ लें, चोरों व  कातिलों को बचाने के लिए देश की अदालतों का जितना जी चाहे समय बर्बाद करे, उन पर कोई लीगल करवाई नहीं होगी। 
अब वक्त आ गया है अदालतों में पड़े करोड़ों केसों के पीड़ितों को न्याय दिलाने का। इस सम्वन्ध में सरकार को जनता की राय लेनी चाहिए। लेकिन बड़े अफ़सोस की बात है कि  यदि कोई सोशल वर्कर या कोई व्यक्ति प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री को कानून में सुधार के लिए पत्र लिखता है तो वही पत्र 6 महीने के बाद इलाके का पुलिस हवलदार आपके घर पर लेकर आएगा और उस पत्र में लिखी बातो के आधार पर आपके ब्यान लिखकर ले जाएगा।  

बस ! आजतक सरकारी तौर पर जनता के विचारो पर यही कारबाई होती आई है। 
आज के युग में लोगो में  स्वार्थ व लालच बढ़ चुकी है , अनपढ़ता के कारण लोगो में  देश भक्ति की भावना  99 प्रतिशत खत्म हो चुकी है सभी लोग सरकार में धक्का होने पर यही कहते हैं कि हमने क्या लेना ? यही वजह है कि इस देश में समस्याएं बढ़ती जा रही है कानून व्यवस्था बिगड़ती जा रही है प्रशासन में भरस्टाचार व लोगो में लालच की भावना होने की वजह से आज  सरकार जनता को और जनता सरकार को सहयोग नहीं देना चाहती। 
आजादी से पहले गाँव के कुछ लोग ही जमीन का बटवारा व लेनदेन, मैरिज आदि के मसले सुलझा लिया करते थे। लेकिन जब से तथाकथित नेताओ, पुलिस व सरकार की दखलअंदाजी लोगों के जीवन में ज्यादा हुई है तब से ही लोग अदालतों के चक्कर में ज्यादा पड़ते जा रहें हैं। सरकार को चाहिए कि जमीन, जायदाद, लेनदेन व मैरिज जैसे केसों का पुलिस व अदालतों के बिना ही समाज के लोगों जिनमे  एन. जी. ओ., अध्यापक या बजुर्ग लोगो आदि को सौंपा जाए जो उस पर विचार करे यदि पंचायत मुहल्ला स्तर पर केस का निपटारा नहीं होता। तो  ऐसे केसो की ही सरकार रिपोर्ट ले यदि ऐसे केसों का मुहल्ले गांव स्तर पर ही निपटारा नहीं होता तभी सरकारी तंत्र उन्हें कोर्ट में पेश करे।
Shri Paul Sharma President
RTI & Human Rights Activist
Human Rights Action Media


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