Saturday 30 December 2017

Right of Information Act for the transparency in the government department

In India Government has passed a law in 2005 Right of Information Act for the transparency in the government department. Unfortunately due to illiteracy and selfishness among Indian citizen this RTI law could not provide any satisfactory beneficial result to the public to eradicate corruption.  It is world known that Indians are money minded and to make money they can do every illegal work.


To make India corruption free some people took initiative to file RTI application to furnish information from government department and public got information from the various govt. departments.
In starting period state information commission used to help applicant and pressurized to public information to provide required information to applicant within stipulated time. Now in present totally scenario has been changed and the state information commission has started to help government public officers.

In the state information commission office if the public information officer do not appear or miss his presence in the bench in that time commissioner give him relief but by chance any applicant miss any hearing date any time in that situation commissioner immediately dispose of the case.
If applicant opposed it in that time the commissioner reply in hard tune to applicant if you are not satisfied file a case in high court against it.
Suppose a common man or social worker seek any information from government department to expose corruption and file application to seek information have to spend all expenditure from his pocket and other hand government employee public information officer spend all money from government exchequer.
At last Indian government’s minister and officer class has killed the tool of a common man Right of Information Act so that public can’t expose the corruption in government department.
Shri Paul Sharma President
RTI & Human Rights Activist
9417455666



Saturday 23 December 2017

मास्टर जी को भी ज़िंदगी भर यह किताब याद नहीं होती

भारत में अंग्रेज लार्ड मैकाले द्वारा शुरू की गई शिक्षा प्रणाली केवल देश के लोगो को क्लर्क तक ही ज्ञान देती है और लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति हर  व्यक्ति के  सोचने की शक्ति खत्म कर देती है इस तरह एक छात्र पहली क्लास से लेकर एम् ए तक रट्टा ही लगाता रहता है और स्कूल का मास्टर राजनीति या इतिहास की एक ही किताब हाथ में पकड़ कर हर रोज़ बच्चो को पढ़ाता है और मास्टर जी को भी ज़िंदगी भर यह किताब याद नहीं होती और किताब पढ़ते-पढ़ाते स्कूल से रिटायर तक हो जाता है।   

आप किसी स्कूल में जाकर तीस साल पहले पढ़ने वाले बच्चो का स्कूल के प्रिंसिपल के दफ्तर के बाहर मैरिट में आने वाले स्टूडेंट्स का नाम पढ़े वहां पर 70 -80 प्रतिशत तक मैक्सीमम नम्बर  आते थे। 
दोस्तों अब मेरे देश के बच्चो का दिमाग नूडल्स पिज़ा बर्गर मंचूरियन खा खा कर  हार्ड डिस्क बन चूका है अब वे रट्टा लगा लगा कर 99 प्रतिशत मार्क ले सकते है। 
सोचने की बात है ? लक्कड़ वाली सीढ़ी कैसे चढ़ी जाती है यह उन्हें नहीं आता लेकिन उनकी उंगलिया मोबाइल की स्क्रीन टच पर बहुत तेज दौड़ती है।  
आज सी बी एस सी स्लेबस पढ़ने वाले बच्चे  99 प्रतिशत मार्क जरूर ले लेते है लेकिन यह बच्चे अंधेरे में जाने से डरते है दूसरी तरफ 33 प्रतिशत मार्क लेने वाले सरकारी स्कूलों के बच्चो को चाहे अंधेर कोठरी या गुफा में भेज दो वे डरते नहीं क्योकि उनके 33 प्रतिशत ज्ञान और 66 प्रतिशत जगह में साहस और हिम्मत होती है वे हर फिजिकल फील्ड में कामयाब रहते है। 
अगर वास्तव में हम भारत को डिज़िटल बनाना चाहते है तो समय के अनुसार जो काम कम्प्यूटर की हार्ड डिस्क सॉफ्टवेयर कर सकते है उसको हमे बच्चो के दिमाग से नहीं करवाना चाहिए उनके दिमाग में फिजिक्स केमिस्ट्री मैथ को रट्टा लगवा कर घुसेड़ने की जगह उन्हें प्रैक्टिकल एजुकेशन की तरफ लेकर जाए। 
आज देश के युवा इंजीनियर डॉक्टर वकील मजिस्ट्रेट आई ए एस, आई पी एस जो थेओरी में पास होकर डिग्री तो हासिल कर लेते है लेकिन प्रैक्टिकल में उन्हें कुछ नहीं आता। 
जिसका नतीज़ा हम देख रहे 71 साल की आज़ादी के बाद भी भारत देश हर क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है। 

अंत में हम सभी को इस पर विचार करना चाहिए ताकि भारत के नन्हे मुन्ने बच्चे किताबो के रट्टे लगा कर 99 प्रतिशत मार्क लेने की दौड़ से बाहर आकर प्रैक्टिकल प्रैक्टिस में अपना अधिक समय लगाए ताकि हमे चीन जर्मनी फ्रांस से नई टेक्नोलॉजी की मशीनरी मंगबाने की जगह भारत के युवा भारत में ही नए आविष्कार करे। 
श्रीपाल शर्मा 
आर टी आई ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट 
09417455666 
      

Friday 22 December 2017

डाक्टर साहेब ने बेटे की शादी पर करोड़ो खर्च कर दिया

कुछ दिन पहले लुधियाना के सिविल लाइन में खुले एक प्राइवेट हॉस्पिटल के मालिक डॉक्टर ने मुझे बताया कि उसने अपने लड़के की शादी बड़ी धूम धाम से की है और ऐसी शानो शौकत वाली शादी शायद लुधियाना में नहीं हुई होगी। 

डाक्टर साहिब की यह बात सुन कर मै सोच में पड़ गया कि एक करोड़पति अनपढ़ व्यापारी व पढ़े लिखे डॉक्टर का  अपने परिवार के लिए एक ही सपना रह गया है कि एक बड़ी कोठी, बड़ी कार और बच्चो की शादी धूमधाम से हो। बस हिन्दोस्तान के लोगो की यही ज़िदगी है। 
क्या आप जानते है ? भारत देश में डाक्टर साहेब अपना सपना पूरा करने के लिए मरीजों को दोनों हाथो से लूटते है और ये गरीब का खून तक निचोड़ लेते है  कई बार लोग डॉक्टर से इलाज़ करवाते करवाते मरीज़ की जान  बचाने के लिए अपना घरबार भी बेच देते हैं। अगर मरीज़ मर जाये तो ये डॉक्टर साहेब  तब तक डैड बॉडी को उठाने नहीं देते जब तक इनके हॉस्पिटल का बिल नहीं मिल जाता।   

थोड़ा सा दिमाग में विचार करें ?
केवल एक रात में  अपने बेटे की शान से करोड़ो रुपया खर्च करके शादी करने वाले डाक्टर ने यह रुपया कितने मरीज़ो के परिवार से  इलाज़ के नाम पर लूटा होगा। यह तो ईश्वर ही जानता है ?
पर मुझे तो डाक्टर साहेब की सोच पर हैरानी हो रही जिसने कहा कि मैंने बेटे की शादी पर करोड़ो खर्च कर दिया और ऐसी शादी लुधियाना शहर में पहले कभी नहीं हुई। 

अफ़सोस ! अगर डॉक्टर साहेब यह कहता कि मैं लुधियाना शहर के लोगो की बिना लालच 40 साल से निस्वार्थ  सेवा कर  रहा हूँ  अगर आज  मेरे पास लाखो करोड़ो रुपये नहीं है लेकिन मेरे और मेरे परिवार की खुशहाली के लिए हज़ारो लोगो की दुआए मेरे साथ है जिनका मैंने बिना पैसे लिए इलाज़ किया है। 
श्रीपाल शर्मा 
आर टी आई ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट 
09417455666