Monday, 12 March 2018
RTI and Human Rights: पुलिस और न्यायप्रणाली की खामियों के बारे कोई भी आव...
RTI and Human Rights: पुलिस और न्यायप्रणाली की खामियों के बारे कोई भी आव...: भारत में आज भी लोग अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा कहने से डरते है जनता चाहे अनपढ़ है या पढ़ी लिखी हम में से कोई भी व्यक्ति बिना स्वार्थ या मत...
Sunday, 11 March 2018
CT scan, MRI and PET CET Scan diagnostic tests facilities must be in all government hospital and free of cost in India
I want to bring your kind notice in the medical facilities
that are being provided by doctors to the public and how it has been suffering
in the hands of doctors in the name of diagnosis.
In Indian constitute it has been written that government
will provide equality and health facilities to all citizen of India but the
scenario is different public is dying without treatment.
Doctor’s communities have no fear of law and orders
because they are working under the shelter and support of politician and
bureaucrat.
As a result Indian doctors have become selfish and looting
public with both hands. The Hippocratic Oath taken for ethical conduct to
doctors who recommend diagnostic by doctors appears to have lost its relevance
these days.
In present time doctors has been so greedy that to make
money they create a fear in the mind of patient that he is in serious physical
problems and it required immediate diagnostic test and operation.
The doctors recommend
diagnostic test to a special center where from they get 50 to 60% commission.
Doctors prescribe medicines to patient only that company where from they get
huge commission.
Now a day surgeon doctors has also started to make money by
operation. If the patient is not required any operation but to make money they
put pressure to patient for operation and implant stent and pacemakers in
patient. The commission on tests and medicals equipment is now 40-60 percent.
In past time doctors used to check patient physically to
examine pulse or with stethoscope. In present time doctors do not take any
responsibilities and recommend various medical tests to make patient satisfy.
It is old proverb that health is wealth. The Government has
started a number of schemes for public health and spends millions of rupees in
these projects for welfare but due to corruption in government medical
department it is proving useless so public does not get any gain from such
welfare projects on ground level.
According to a survey by the Indian Institute of Population
Science and WHO in six states more than 40% of low-income families in India
have to borrow money from outside the family to meet their health care costs.
In government hospital at district level there is no proper latest technology
machine to diagnosis serious diseases and when it detected late due to not
proper facilities in government hospital it becomes so late and it change into
fatal disease or cancer.
Health diseases are major problem in all of us and due to
heavy charges of medical diagnosis test a middle man family member avoid to
getting test so in every district level civil hospital there must be provision
and facilities of all kind of diagnosis test and it must be compulsory and free
of cost for all citizen of India.
Now it is also the need of time to rein doctor’s greediness
it can only be possible that government must start all diagnostic tests in all
government civil hospital. There must be CT scan, MRI and PET CET Scan
diagnostic tests facilities in all government hospital and it may be free of
cost or on genuine charges that is affordable by general public.
Shri Paul Sharma
RTI & Human Rights Activist
Human Rights Action Media
Saturday, 10 March 2018
पुलिस और न्यायप्रणाली की खामियों के बारे कोई भी आवाज़ उठाने के लिए तैयार नहीं
भारत में आज भी लोग अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा कहने से डरते है जनता चाहे अनपढ़ है या पढ़ी लिखी हम में से कोई भी व्यक्ति बिना स्वार्थ या मतलब के अपने देश या समाज के हित में एक भी लाइन लिखने से कतराता है क्योकि सबसे पहले हम सोचते है कि मेरे को इससे क्या लाभ होगा।
एक पुलिस वाला आठ श्रेणी पास जो प्रमोट होकर इंस्पेक्टर बना होता है उसकी रिपोर्ट में सच्चाई ढूंढने के लिए जिस मुल्क के आई पी एस अफसर व सी बी आई और न्यायालय वर्षो लगा देते है ऐसे देश के लोग सरकार से क्या सुरक्षा की उम्मीद कर सकते है जिस देश का एक भ्रस्ट पुलिस अफसर रिश्वत लेकर किसी के हक़ में या खिलाफ अपनी मर्जी से रिपोर्ट तैयार कर देता है उसमे क्या सही है और क्या गलत किसी को कोई मतलब नहीं है। ऐसा लगता है कि सदियों से गुलाम रहने वाली भारत की जनता आज भी मुग़लो और अंग्रेजो के अत्याचार, जुल्म के खौफ से इतनी भयभीत है कि आज तक पुलिस और न्यायप्रणाली की खामियों के बारे कोई भी आवाज़ उठाने के लिए तैयार नहीं है।
यही कारण है आज देश में नेता भ्रस्ट, पुलिस भ्रस्ट, प्रशासन भ्रस्ट, न्यायप्रणाली भ्रस्ट और जनता सबसे भ्रस्ट जो मूक बनकर भ्रस्टाचार को सह रही है।
देश की जनता को रहने के लिए घर, खाने के लिए भोजन, स्वास्थ्य के लिए मेडिकल सुविधा, न्याय व सुरक्षा की जरूरत होती है जो आज हमारे देश में उपलब्ध नहीं है और सारा देश उसके लिए तड़प रहा है। सरकार को कोस रहा है।
देश की जनता को रहने के लिए घर, खाने के लिए भोजन, स्वास्थ्य के लिए मेडिकल सुविधा, न्याय व सुरक्षा की जरूरत होती है जो आज हमारे देश में उपलब्ध नहीं है और सारा देश उसके लिए तड़प रहा है। सरकार को कोस रहा है।
किसी भी राष्ट्र में भ्रस्टाचार को खत्म करने और जनता को सुरक्षा प्रदान करने में न्यायपालिका और पुलिस का एहम रोल होता है आज़ादी से अब तक सरकार अंग्रेजो के कानून को ही आज़ाद भारत के लोगो पर थोंप रही है इसमें क्या सही है और क्या गलत इससे किसी को कोई मतलब नहीं है। न ही किसी ने इस पर गहराई से विचार किया है।
यही कारण है कि आज भी सर्वोच्च न्यालय पुलिस और लोअर कोर्ट की लेखनी पर चर्चा करके अपना व देश की जनता का वक्त जाया कर रहा है। कैसे ?
देश में कही भी, कोई भी क्राइम का केस होने पर सबसे पहले उस इलाके के थांने का ए एस आई जो कानून जानता है या नहीं, वह बहुत पढ़ा लिखा है या नहीं इससे किसी को कोई मतलब नहीं है चाहे यह इंस्पेक्टर पुलिस में कांस्टेबल से प्रमोट होकर ए एस आई बना हो तब भी कोई लेना देना नहीं। कानून के मुताबिक यही ड्यूटी इंस्पेक्टर सारे केस की छानबीन के बाद केस की रिपोर्ट बना कर अदालत में पेश करता है।
फिर न्यायालय में इलाका मिजस्ट्रेट उसी रिपोर्ट पर सारी कार्रवाई करता है गवाहों के ब्यान लेता है भारतीय दण्ड संहिता कानून की धारा जो ए एस आई ने अपनी समझ से रिपोर्ट में लगाई होती है उसी पर सारा केस कई साल तक घूमता रहता है। हाई कोर्ट में अपील होने पर भी यही फाइल वहां पहुँच जाती है और इसी पर हाई कोर्ट के जज माथा पच्ची करते है और अपना निर्णय सुना देते है। अगर हाई कोर्ट में भी किसी को संतुष्टी नहीं होती है तो यही फाइल सुप्रीम कोर्ट में पहुँच जाती है और यहाँ पर देश के सर्वोच्च न्यायधीश एक पुलिस कांस्टेबल द्वारा लिखी गई रिपोर्ट पर बहस करते है उसमे क्या गलत है और क्या सही ढूँढ़ते है।
देश का हर नागरिक जानता है कि है हमारी पुलिस भ्रस्ट है रिश्वत लेकर जिसे चाहे छोड़ दे और जिसे चाहे मुलज़िम बना दे। बस। एक बार जो थाने में पुलिस ने रिपोर्ट लिख दी सारा मीडिया और न्याय प्रणाली उसी में सच और झूठ खोजने लग जाती है। उसी पर नेता लोग भाषण करते है।

अब समय आ गया है सरकार न्याय प्रणाली व पुलिस प्रशासन में सुधार करने के लिए सरकार कानून पास करे कि अगर किसी जगह पर भी कोई क्राइम होता है पुलिस उसकी रिकॉर्डिंग करे, मौके पर ही सभी गवाहों के ब्यान रिकॉर्ड किये जाए ताकि रिश्वत लेकर पुलिस इंस्पेक्टर ब्यानो में हेरफेर न कर सके।
Shri Paul Sharma President
RTI & Human Rights Activist
Human Rights Action Media
अदालतों में बैठे वकील लोगों को न्याय दिलवाने की बजाए केसों को उलझा रहे हैं
आजादी के बाद 1960 से अब तक देश को न तो ईमानदार नेता मिले, न पुलिस अफसर और न ही जनता को न्याय मिला।
यही कारण है कि अदालतों में लोग भटकते फिरते हैं। अनपढ़ता के कारण आज तक पढ़े लिखे बाबुओं ने जनता का कानून के नाम पर शोषण ही किया है। आज भी देश में 90 प्रतिशत लोगों को फार्म तक नहीं भरने आते हैं। कहने का मतलब है कि लोगों को प्रैक्टिकल कार्यो के बारे में कुछ पता ही नहीं है।
1947 से पहले लोगों में भाईचारा था। लोग देशभक्त थे। सारे देश की जनता का एक ही नारा था आजादी और उस समय लोग अंग्रेजों से आजादी पाने के लिए जी रहे थे। अंग्रेजों से लड़ रहे थे। चाहे वे पढ़े लिखे थे या अनपढ़। यह सच है कि अंग्रेजो के जमाने में अदालतों में आम जनता को न्याय मिलता था कोई भी फौजदारी या सिविल का केस 30 साल तक अदालतों में नहीं लटकता था। उस वक्त का प्रशासन ईमानदार था। जज और वकील जनता के दुःख और दर्द की नब्ज पहचानते थे। वकील लालच में आकर किसी को धोखा नहीं देते थे। लेकिन आजादी के बाद धीरे धीरे वकीलों में नोट कमाने की होड़ लग गई और वे स्वार्थी हो गए उन्होंने जनता को लूटना शुरू कर दिया इस तरह न्याय दिलवाने वाले वकीलों का जमीर मर गया। अदालतों में उन्हें इंसान का दुःख दर्द नहीं केवल पैसा ही पैसा दिखाई देने लगा। यही कारण है कि आज लालची वकीलों की वजह से ही करोड़ों केस अदालतों में पेंडिंग पड़े हैं। आज एक व्यक्ति जवानी में यदि अदालतों के केसो में उलझता है तो वकीलों की वजह से बुढ़ापे तक उसे न्याय नहीं मिलता।
कचेहरी में बैठे वकील लोगों को न्याय दिलवाने की बजाए केसों को उलझा रहे हैं। वकील पैसे बंनाने की लालच में पेशी पर आए लोगों की जेब से एविडेन्स, जवाब, एग्जम्पशन, रिप्लाई, स्टेटमेंट, जमानत, कन्सिडरेशन, वकालतनामा आदि कईं नामो से केस में फंसे हुए लोगों से रुपए ऐंठते रहते हैं। इसलिए अदालत के केस में फंसे लोग वकीलो के लिए सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी बन जाते है।
मजे की बात यह है कि अब लोग भी सयाने हो गए है कुछ लोग जब अदालत में तारीख पर जाते हैं तो वह अपनी जेब में 2-3 सौ रुपए लेकर ही जाते हैं। जब वकील उनसे पांच सौ रुपए टाइप कागजों के या अपनी फीस आदि मांगता है तो केस पर आया व्यक्ति अपनी जेब दिखा देता है कि मेरे पास तो सिर्फ 2 सौ रुपए है और भी यह बस का किराया है और मैंने रोटी भी खानी है। अभी पैसे नहीं है अगली तारीख पर आपको रुपए दे दूंगा। यदि वकील लालची हो गए है अब लोग भी सयानी हो गए हैं जो जेब से जल्दी कहीं कोई पैसा नहीं निकालते।
इसलिए अदालतों में लाखों केस पेंडिंग पड़े होने का मुख्य कारण वकील ही हैं जो हर तारीख पर अपनी दिहाड़ी पाने के चक्कर में कोई भी फैंसला कराने में दिलचस्पी नहीं लेते और वर्षो तक केस लटकता रहता है।
सोचने की बात है कि पेशी के दौरान जब अदालत में न्यायधीश के सामने एक कातिल मुजरिम पेश होता है तब उस समय एक वकील उसे कातिल साबित करना चाहता है और दूसरा वकील उसे निर्दोष साबित करना चाहता है। जज को पता है कि दोनों वकीलों में से एक झूठा वकील है जो कातिल को बचाना चाहता है। बस इसी कश्मकश में मुजरिम को सजा नहीं मिलती। दोनों तरफ के वकील साहेब मुजरिम व पीड़ित से हर तारीख पर गवाहों के ब्यान आदि के नाम पर फीस लेकर जेबों में डालते रहते हैं उन्हें कोई टोकने वाला नहीं है। सरकार ने भी वकीलो को अधिकार दिया है कि वे अपनी मनमर्जी से जैसे चाहे काम करे उन पर कोई कार्रवाई नहीं होगी इसलिए अब वकील सुप्रीम कोर्ट के कानून के अनुसार अपने अपने ग्राहक से जितने मर्जी रुपए ऐंठ लें, चोरों व कातिलों को बचाने के लिए देश की अदालतों का जितना जी चाहे समय बर्बाद करे, उन पर कोई लीगल करवाई नहीं होगी।
अब वक्त आ गया है अदालतों में पड़े करोड़ों केसों के पीड़ितों को न्याय दिलाने का। इस सम्वन्ध में सरकार को जनता की राय लेनी चाहिए। लेकिन बड़े अफ़सोस की बात है कि यदि कोई सोशल वर्कर या कोई व्यक्ति प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री को कानून में सुधार के लिए पत्र लिखता है तो वही पत्र 6 महीने के बाद इलाके का पुलिस हवलदार आपके घर पर लेकर आएगा और उस पत्र में लिखी बातो के आधार पर आपके ब्यान लिखकर ले जाएगा।
बस ! आजतक सरकारी तौर पर जनता के विचारो पर यही कारबाई होती आई है।
आज के युग में लोगो में स्वार्थ व लालच बढ़ चुकी है , अनपढ़ता के कारण लोगो में देश भक्ति की भावना 99 प्रतिशत खत्म हो चुकी है सभी लोग सरकार में धक्का होने पर यही कहते हैं कि हमने क्या लेना ? यही वजह है कि इस देश में समस्याएं बढ़ती जा रही है कानून व्यवस्था बिगड़ती जा रही है प्रशासन में भरस्टाचार व लोगो में लालच की भावना होने की वजह से आज सरकार जनता को और जनता सरकार को सहयोग नहीं देना चाहती।
आजादी से पहले गाँव के कुछ लोग ही जमीन का बटवारा व लेनदेन, मैरिज आदि के मसले सुलझा लिया करते थे। लेकिन जब से तथाकथित नेताओ, पुलिस व सरकार की दखलअंदाजी लोगों के जीवन में ज्यादा हुई है तब से ही लोग अदालतों के चक्कर में ज्यादा पड़ते जा रहें हैं। सरकार को चाहिए कि जमीन, जायदाद, लेनदेन व मैरिज जैसे केसों का पुलिस व अदालतों के बिना ही समाज के लोगों जिनमे एन. जी. ओ., अध्यापक या बजुर्ग लोगो आदि को सौंपा जाए जो उस पर विचार करे यदि पंचायत मुहल्ला स्तर पर केस का निपटारा नहीं होता। तो ऐसे केसो की ही सरकार रिपोर्ट ले यदि ऐसे केसों का मुहल्ले गांव स्तर पर ही निपटारा नहीं होता तभी सरकारी तंत्र उन्हें कोर्ट में पेश करे।
Shri Paul Sharma President
Shri Paul Sharma President
RTI & Human Rights Activist
Human Rights Action Media
Thursday, 8 March 2018
महिलाओं को पुरुष प्रधान समाज में कोई न्याय नहीं
पूरे देश में आज महिला दिवस मनाया जा रहा है जिसमें सरकार व नेता लोग महिला उत्थान के लिए हर वर्ष कई घोषणाएं कर देते हैं लेकिन वास्तव में आज तक महिलाओं को पुरुष प्रधान समाज में कोई न्याय नहीं मिला। 
बेलन ब्रिगेड की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनीता शर्मा ने प्रेस वार्ता कहा कि आज हम आधुनिक युग में पहुँच चुके हैं। इस युग में शरीरिक बल नहीं मानसिक बल की जरूरत है। पुराने समय में हर कार्य करने के लिए चाहे युद्ध हो, खेतीबाड़ी हो, जंगलों में शेर से लड़ाई हो इनमें शरीरिक बल की जरूरत होती थी और यह शरीरिक बल ईश्वर ने पुरुषों को दिया था। इसलिए भय के अवसर पर नारी अपनी सुरक्षा के लिए पुरुषो पर निर्भर करती थी।
अनीता शर्मा ने बताया कि आज के युग में सब कार्य दिमाग से होते हैं और यह दिमाग पुरुषो से ज्यादा महिलाओं में है जो अपनी समझ से सारा घर परिवार चलाती हैं और कम्प्यूटर पर बैठकर बिना शरीरिक बल, केवल दिमाग से वह पुरुषो से कही अधिक कार्य कर सकती है। लेकिन अफ़सोस इस बात का है कि महिलाओं के प्रति मर्दो की सोच आज भी नहीं बदली इसलिए आज भी पुरुष
पुराने समय में जिस तरह अपने शरीरिक बल से धनुष बाण तोड़कर महिलाओं को जीतकर लाते थे और उन्हें अपनी जागीर समझते थे। आज भी यही हालात है।
अनीता ने अंत मे कहा कि चाहे दुनिया आधुनिक हो गई है लेकिन भारत के पुरुषो की सोच नहीं बदली और वे आज भी महिलाओं को केवल भोग की वस्तु या अपनी जागीर समझ कर महिलाओं से दुसरे दर्जे के नागरिक के समान व्यवहार किया जाता है। महिलाऐं घर, समाज में कहीं सुरक्षित नहीं हैं उन्हें कहीं न्याय नहीं मिलता। इसी वजह से एक महिला खुद अपनी कोख से बच्ची को जन्म देने से डरती है क्योकि उसे मालूम है कि बेटी सुरक्षा आज भी समाज में नहीं है। इसलिए पुरुष प्रधान समाज जब तक महिलाओं को इज्जत और सुरक्षा प्रदान नहीं करता तब तक इस देश में नारी सशक्तिकरण नहीं होगा।
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